I am passionate about travelling and photography. This blog contains description of different places visited by me including travel tips, review etc. In addition to this we will also share from time to time our views and reports on ongoing developments in various fields worldwide.
बद्रीनाथ और माणा गांव की मेरी यात्रा - My trip to Badrinath and Mana village
Get link
Facebook
Twitter
Pinterest
Email
Other Apps
-
दोस्तों आज पूरी दुनिआ कोरोना महामारी के दंश को झेल रही है और इस से बचाव के लिए ट्रैवेलिंग करीब करीब बंद ही है ऐसे में वो पुराने दिन बहुत याद आते हैं जब कभी भी, कहीं भी मन हो घूमने का तो निकल जाया करते थे। उन्ही दिनों की याद तजा करते हुए आज मैं आपको अपने एक अनोखे और रोमांचक सफर पर ले कर जा रहा हूँ, तो चलिए सुरु करते हैं।
बात वर्ष 2013 के जून महीने की है। ग्रीषम काल की छुट्टियां चल रही थी और कोर्ट भी बंद हो गये थे।
विचार आ रहा था की कहीं घूमने के लिए चला जाये। अभी ये सब विचार मन के अंदर ही थे की तभी मेरी बात मेरे एक घनिस्ट कॉलेज के मित्र से हुई जिनका नाम कृष्णा बल्लभ है और उन्होंने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किये। फिर क्या था, घूमने का प्लान बन गया। अब बस डेस्टिनेशन फाइनल करने की बात रह गयी थी और थोड़ा डिस्कशन करने के बाद हमने हरिद्वार जाने का निश्चय किया। ये एक पारिवारिक ट्रिप होनी थी। मेरे मन में कहीं न कहीं हिमालय में और अंदर तक जाने की इच्छा थी इसलिए मैंने अपने मित्र को भी कह दिया की कम से कम एक सेट ठण्ड के कपड़े भी रख ले।
हिमालय (Himalayas)
हमने रात्रि में ही सामान की पैकिंग कर ली और सुबह तैयार होकर अपनी फैमिली के साथ मैं खुद की कार से अपने मित्र के घर की ओर चल पड़ा, जो की दिल्ली के साकेत में रहते थे। तिथि थी 10 जून 2013, थोड़ी देर में मै वहां पहुँच गया और अपने मित्र और उनकी फैमिली को पिक करने के बाद हम हरिद्वार की ओर निकल पड़े।
उस दिन काफी गर्मी और उमस भरा मौसम था, और इसका आभाष तब और हुआ जब हम लोगों ने एक ब्रेक लिया लंच के लिए और गाड़ी के वातानुकूलित माहौल से बाहर निकल कर ऐसा लगा की कहीं हमने गलत समय न चुन लिया हो सफर के लिए !
लंच करने के बाद मैंने गाड़ी स्टार्ट की और हरिद्धार के लिए निकल चले। रास्ते में मैंने अपने मित्र से कहा की क्यों न हम हरिद्वार के अलावा कहीं और भी चले ! फिर मैंने वैली ऑफ़ फ्लावर (valley of flower ) का नाम सुझाया, और मैंने कुछ वीडियोस जो यूट्यूब पर देखे थे उस से उसका एक चित्रण प्रस्तुत किया। जिसके लिए वो भी सहर्ष तैयार होगये।
वैली ऑफ़ फ्लावर्स (कर्टसी बीबीसी )
हमलोग करीब शाम के साढ़े तीन बजे हरिद्वार पहुँच गये। फिर गाड़ी पार्क करने के बाद हम माँ मंशा देवी मंदिर जाने के लिए निकल पड़े जो की एक पहाड़ी पर स्तिथ है। मंदिर जाने के लिए हमने पहले सोचा की ट्राली से जाया जाये, पर काफी भीड़ होने के कारन हमने पैदल ही जाने का निश्चय किया।
हमें मंदिर तक पहुँचने में करीब 1 घंटा लगा, पर गर्मी और उमस के कारन चढ़ाई थोड़ी दूभर लगी। मंदिर पहुँच कर हमने दर्शन किया और थोड़ी देर में फिर वापसी के लिए निकले। ऊंचाई से पूरी हरिद्वार नगरी और गंगा नदी का काफी विहंगम दृश्य प्रस्तुत होता है। सबसे सुन्दर मुझे गंगा नदी का लहराता हुआ कोर्स दिखा जो की ऋषिकेश से पहाड़ों के बिच से होते हुए घुमावदार रास्ता अपनाते हुए हरिद्वार पहुँचती है और फिर आगे निकल जाती है। वैसे मैंने वर्ष 2009 में ऋषिकेश का एक बहुत ही जबरदस्त ट्रिप किया था अपने दोस्तों के साथ, जो की एडवेंचर से भरपूर था। उस दौरान मैंने गंगा नदी के बर्फीले पानी में रिवर राफ्टिंग की थी।
रिवर राफ्टिंग ऋषिकेश में (River Rafting in Ganga in Rishikesh)
पार्किंग में पहुँच कर मैंने अपने चचेरे भाई हिमांशु को कॉल किया जो की ऋषिकेश में रहता है परिवार के साथ, उसको मैंने अपना प्रोग्राम बताया वैली ऑफ़ फ्लावर जाने का, तो उसने मुझे बताया की वो जगह करीब 250 km की दुरी पर है और हिमालय में काफी अंदर दुर्गम स्थान में स्तिथ है। उसने ये भी बताया की वैली ऑफ़ फ्लावर का मार्ग ऋषिकेश होकर ही जाता है अतः हमें अपने घर आने का निमंत्रण दिया। फिर हमलोग ऋषिकेश के लिए निकल चले और करीब 40-50 मिनट की ड्राइव के बाद मै हिमांशु के घर पहुँच गया। फिर हिमांशु और उसके पेरेंट्स यानि चाचा जी और चाची जी से मुलाकात हुई।
रात्रि में खाना खाने के बाद डिटेल में डिस्कशन हुआ, और हिमांशु ने मुझे सुझाव दिया की चूँकि मैंने पहले कभी हिमालय के दुर्गम पहाड़िओं पर ड्राइव नहीं किया है तो बेहतर होगा की हम एक लोकल ड्राइवर रख ले और बड़ी गाड़ी किराये पर ले। ये बात हम सभी को उपयुक्त लगी और भाई ने सुबह के लिए एक टाटा सूमो का अरेंजमेंट करवा दिया और साथ में ड्राइवर भी। जब हम लोग आपस में बात चित कर रहे थे तभी थोड़े देर के लिए लाइट चली जाती है और हमलोग घर के छत पर चले जाते हैं। तभी मैंने देखा की दूर पहाडों पर बिजली चमक रही है, और थोड़ी देर में बादलों की गड़गड़ाहट भी सुनाई देने लगी। अचानक से मौसम में काफी परिवर्तन मह्सुश हुआ और कुछ देर पहले हमलोग गर्मी से परेशान थे, अब ठंडी हवाओं के झोंके का आनंद ले रहे थे। थोड़ी देर में बारिश की बुँदे पड़ने लगी तब हमलोग वापस निचे आगये और फिर सो गए।
सुबह तैयार होते होते हमें करीब 9 बज गए थे, जबकि ड्राइवर गाड़ी लेकर 8 बजे तक आ गया था। वो टाटा सूमो गाड़ी थी, फिर हमलोगों ने सामान गाड़ी में रख दिया और मेरे भाई ने ड्राइवर जिसका नाम भट्ट था उसे बता दिया की ये मेरे फैमिली के लोग हैं और इनका पूरा ध्यान उसे रखना है।
फिर हमलोग निकल पड़े वैली ऑफ़ फ्लावर्स के लिए। वो रास्ता गंगा नदी के समानांतर चल रहा था। गंगा नदी हमारे दाहिने साइड में थी। नजारा बहुत ही विहंगम लग रहा था। धीरे धीरे हमारी गाड़ी पहाड़ की उंचाईओं पर गोता लगाने लगी और जो गंगा नदी पहले चौड़ी सी दिख रही थी अब वो एक संकरी सी जल धारा की तरह प्रतीत हो रही थी ऊंचाई से देखने पर। अब पहले जैसे गर्मी का अहसाह भी नहीं हो रहा था। करीब डेढ़ घंटे के बाद हमने एक ब्रेक लिया और रोड किनारे एक छोटे से ढाबे में हमलोगों ने चाय पिया और मैग्गी का आनंद लिया। वहां का दृश्य काफी मनोरम था और पहाड़ों पर उमड़ते घुमड़ते बादलों का झुण्ड भी देखा। बिच बिच में थोड़ी बहुत बारिश की फुहारें भी पड़ रही थी जो मौसम को और भी खुशनुमा बना रहा था। वहां हमने कुछ फोटोग्राफ्स भी लिए और फिर आगे की ओर प्रस्थान कर गए।
भट्ट ने हमे रास्ते में ढ़ेर सारी कहानियां भी सुनाई जो की उसके निजी लाइफ के एक्सपीरियंस पर आधारित थी, वो रास्ते में आने वाले डेस्टिनेशंस के बारे में भी बता रहा था किसी अच्छे गाइड की तरह। फिर हमारी गाड़ी ढलान की तरफ उतरने लगी और फिर हम करीब करीब गंगा नदी के समक्छ चलने लगे। मैंने नोट किया की वहां सड़क का लेवल कुछ जयादा ही नदी के लेवल के समकक्छ था। मैंने उत्सुकतावश भट्ट से पूछ लिया की यहाँ तो भारी बारिश के समय नदी का पानी सड़क पर आ जाता होगा! जिसका जवाब भट्ट ने हाँ में दिया। ये बात अपने आप में भयावह प्रतीत हुई क्यूंकि रास्ता जयादा चौड़ा नहीं था और बाएं साइड में ऊँची पहाड़ी थी जो की भुरभुरी मिट्टी और चट्टानों से बना हुआ था और लैंडस्लाइड (landslide ) प्रोन भी प्रतीत हो रहा था जबकि दाहिने साइड में गंगा नदी अपनी तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही थी। वहां से गंगा नदी को थोड़ी देर भी टकटकी लगा कर देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था की मानो वो अपनी तरफ खींचना चाह रही हो और आपको चक्कर आने लगता है। भट्ट ने हमें बताया की यहाँ पानी में कोई भी नहीं नहाता क्यूंकि नदी काफी गहरी है और पानी में काफी वेग के साथ घुमावदार लहरें भी उत्पन्न होती रहती है जो किसी माहिर तैराक को भी निगल जाने के लिए पर्याप्त है।
निचला हिस्सा रोड का गंगा नदी के समकछ, मालाकुन्ठी (Low lying area at Malakunthi)
फिर हम वहां से कुछ आगे निकलने के बाद श्रीनगर पहुंचे। हाँ दोस्तों, आपने सही सुना मैंने श्रीनगर ही कहा, ये जम्मू कश्मीर वाला श्रीनगर नहीं अपितु उत्तराखंड वाला है। यहाँ पहुँचने के बाद मैंने नोट किया की अब हम थोड़ा सपाट छेत्र में थे, हमारे बाएं दिशा में गंगा नदी थी और उस पर एक डैम भी था जिसपर कंस्ट्रक्शन का कार्य चल रहा था। पूछने पर भट्ट ने बताया की ये अलकनंदा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट का हिस्सा है और करीब ३०० मेगा वाट बिजली का उत्पादन होगा जब ये पूर्ण छमता पर कार्य करेगा ।
थोड़ी दूर पर उसने हमें एक मंदिर दिखाया जो की नदी के जल छेत्र में आता है और उस मंदिर का नाम धारी देवीहै। मंदिर में जाने के लिए सड़क से गंगा नदी की घाटी की तरफ सीढ़ी बनी हुई थी जो की काफी तीक्चण ढलान था। वहां मुझे कुछ क्रेन दिखाई दिए और भट्ट ने हमे बताया की ये मंदिर की काफी मान्यता है और चूँकि डैम बन जाने के कारन पानी का जलस्तर बढ़ जायेगा और ये मंदिर पानी में दुब जायेगा इस लिए इस मंदिर को ऊपर उठाने का काम चल रहा है इंजीनियरो द्वारा।
थोड़ी देर बाद हमने एक ढाबे में खाना खाया और चूँकि हमारे साथ बच्चे भी थे उनका मन बहलाने के लिए थोड़ा चहल कदमी भी की फिर आगे की तरफ निकल पड़े। धीरे धीरे हम फिर चढ़ाई की ओर बढ़ने लगे और रुद्रप्रयाग फिर कर्णप्रयाग को क्रॉस किया हमने। चूँकि शाम होने लगी थी इसलिए इन दो जगहों पर हम रुक नहीं पाए, परन्तु ऊंचाई से गाड़ी से ही हमने संगम देखा जो की काफी मनोरम लगा। एक तरफ से अलकनंदा का मटमैला पानी था और दूसरी तरफ से भागीरथी का साफ़ और हरा रंग जैसा प्रतीत होने वाला जल, दोनों आपस में मिलन कर रहे थे, नजारा वाकई अद्भुत था। अलकनंदा और भागीरथी के संगम के बाद ही हमें जो जलधारा मिलती है उसे गंगा कहते हैं।
इसके बाद हम अलकनंदा नदी के साथ-साथ ही चलते चले गए। जैसे-जैसे हम पहाड़ों की ऊंचाई पर बढ़ने लगे थोड़ा थोड़ा मौसम भी बदलता हुआ प्रतीत होने लगा। अब पहले जैसी ऊमस और गर्मी नहीं लग रही थी। अब धीरे धीरे अँधेरा घिरने लगा था तब हमने रात्रि पड़ाव का विचार किया और में एक छोटे से रेस्टोरेंट कम गेस्ट हाउस में रुक गए, शायद उस जगह का नाम पीपल कोठी था। फिर हमें ये भी खबर मिली की आगे का रास्ता रोक रखा है क्यूंकि एक गाड़ी खाई में गिर गयी है और कुछ सिख श्रद्धालुओं के हताहत होने की खबर हैं। यह बात काफी दुखद थी, फिर भट्ट ने हमें बताया की आगे का रास्ता और भी दुर्गम है और जरा सी भी असावधानी जान लेवा साबित हो सकती है।
वैली ऑफ़ फ्लावर्स की तरफ जाता रास्ता (way towards valley of flowers)
यहाँ मैं आपको बताना चाहूंगा की वैली ऑफ़ फ्लावर्स के पास ही थोड़ी और ऊंचाई पर हेमकुंठ साहब का विश्व प्रसिद्थ गुरुद्वारा भी है। हेमकुंठ साहब गुरुद्वारा चारों तरफ से ऊँची ऊँची हिमालय की श्रृंख्लाओं से घिरा हुआ है और वहां एक बहुत ही सूंदर सरोवर भी है जिसमे श्रद्धालु स्नान करते हैं दर्शन और पूजा अर्चना करने से पहले। ये सरोवर हिमालय के ग्लेशियर से पिघलती बर्फ़ से बनता है और साल के जयादातर समय यह स्थान बर्फ से ढका रहता है।
अगली सुबह हमसब रेडी होकर ब्रेकफास्ट करने के बाद करीब 9 बजे आगे की जर्नी के लिए निकल पड़े। सुबह का मौसम बड़ा अच्छा था। बिच बिच में बादल भी आतेजाते रहे पर मुख्यतः मौसम साफ़ था और धुप चमकीली निकलती थी जो की ये दर्शाता था की वहां प्रदुषण का लेवल काफी कम था और दूसरा की अब हम ऊंचाई पर भी आ गए थे।
प्लान में बदलाव
करीब 10 -15 किलोमीटर आगे जाने के बाद हमें भट्ट ने बताया की वैली ऑफ़ फ्लावर जाने के लिए करीब 25 -30 किलोमीटर की ट्रैकिंग करनी होती है और गोविन्द घाट से पैदल ट्रैकिंग कर के घाँघरिआ (Ghangharia) पहुँचना पड़ता है जो की करीब 10-12 किलोमीटर की दुरी पर है। वहां नाईट स्टे के बाद आप वैली ऑफ़ फ्लावर्स दूसरे दिन कवर कर सकते हैं। फूलों की घाटी को पूरी तरह घूमने में करीब 24-25 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। भट्ट ने बताया की फूलों की घाटी की सुंदरता अध्भुत है परन्तु छोटे बच्चों के साथ सफर करना थोड़ा कष्टदायक हो सकता है। फिर मैंने हिमांशु से भी फ़ोन पर बात करके सलाह मश्वरा किया तो उनका भी ओपिनियन यही था की छोटे बच्चों के साथ थोड़ा मुश्किल हो सकती है ट्रैकिंग में और उसने बताया की गोविन्द घाट से करीब 40 किलोमीटर दूर सुप्रसिद्ध बद्रीनाथ मंदिर है वहां जा सकते हैं, वहां रुकने की भी अच्छी वयवस्था है और बद्रीनाथ जी के दर्शन के बाद अगर इच्छा हुई तो सिर्फ मेल मेंबर्स वैली ऑफ़ फ्लावर्स की ट्रिप कर सकते हैं और फिर वापसी में पुरे परिवार के साथ ऋषिकेश वापस। ये बात हम सभी को जँच गयी और बल्लभ जी ने भी कहा की मंदिर दर्शन के बाद वो और मै वैली ऑफ़ फ्लावरस कवर कर लेंगे और तब तक वाइफ और बच्चे बद्रीनाथ में ही रुक जायेंगे।
फिर जैसे ही थोड़ी दूर और बढ़ने के बाद हमने देखा की रास्ता और भी खतरनाक होने लगा और चढ़ाई भी बढ़ने लगी। हमारे दाहिने साइड घाटी में अलकनंदा नदी भीषण शोर के साथ बह रही थी और मैंने नोटिस किया की अब पानी का रंग पहले की तरह मटमैला नहीं था, अपितु दुधिआ सफ़ेद हो गया था। इसी दौरान घाटी के बिच से मुझे सुदूर हिमाच्छादित पर्वत दिखे जो की काफी सुन्दर लग रहे थे, मैंने भट्ट से पूछा ये कौन सी पर्वत की चोटि है? तो उसने बताय की ये नर और नारायण पर्वत है जो की बद्रीनाथ में है और हमे वहीँ जाना है। ये सुनकर उत्सुकता काफी बढ़ गयी। फिर मैंने और बल्लभ जी ने भट्ट से कहा "की यार तुमने तो कहा था की ठंडी के कपड़े रख लो, पर यहाँ तो काफी गर्मी है!" इस पर भट्ट ने कहा की "भइआ अगर शाम तक आप लोगों को जैकेट नही पहनना पड़ा तो मै अपना मूछें कटवा लूंगा ". ये सुन कर हम सभी हंस पड़े। वैसे ये बात अलग है की भट्ट की मूछें कोई जयादा थी भी नही।
फिर हमलोग आगे की सफर पर निकल पड़े। अब रास्ता अचानक से काफी उबड़ खाबड़ और चढ़ाई वाला होगया था। हमारी गाड़ी लहराते हुए हिमालय की नयी उचाईयों की तरफ बढ़ने लगी। हम सभी ने ये अनुभव किया की अचानक से हवा में काफी हल्कापन सा महसूस होने लगा था और अब पहाड़ की चोटिओं पर काफी कम पेड़ पौधे दिखने लगे थे। कई जगह रास्ते में हमें सड़क रिपेयर और कंस्ट्रक्शन कार्य भी दिखा। अब वातावरण में बदलाव साफ़ महसूस किया जा सकता था। थोड़ी दूर और आगे बढ़ने पर मुझे अचानक से अपने बाएं साइड घाटी में जहाँ से अलकनंदा नदी बह रही थी वहां कुछ सफ़ेद सा पत्थर नुमा चीज दिखा। मैंने भट्ट से उसके बारे में पूछा तो उसने बताया की ये बर्फ है जो की गर्मिओं में पिघल कर अब छोटी हो गयी है। उसने ये भी बताया की सर्दिओं में यहाँ हरतरफ 5-6 फ़ीट बर्फ की चादर बिच जाती है और अप्रैल माह में बीआरओ (बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन) की टीम इन रास्तों को खोलती है।
जैसे जैसे हम और आगे बढ़ते गए, वैसे वैसे नज़ारा बिलकुल बदलता चला गया। अब हमें हिमाच्छादित हिमालय की चोटियाँ भी दिखाई दे रही थी। ये सब देख कर मन प्रफुल्लित होगया। अब बिच बिच में रास्ते से होकर छोटी छोटी जल धाराएं भी दिखने लगी। एक जगह हमें एक पहाड़ी से निकलती बड़ी सी जल धारा दिखी जो की पहाड़ी में किसी ग्लेशियर के पिघलने से उत्पन्न हो रही थी। भट्ट ने वहां गाड़ी रोकी और हमे कहा की भइआ जाओ थोड़ा आनंद लेलो इस प्राकृतिक झरने का। उसने हमें प्लास्टिक के बॉटल्स भी दिए जिसमें पिने का पानी था और बोला की इन बॉटल्स को थोड़ी देर झरने के पानी में रख देना और ये झरना नेचुरल फ्रीजर का काम कर देगा।
हमलोग फटाफट झरने की तरफ बढ़ गए। निकट जा कर देखा की पानी का प्रवाह काफी तेज था, फिर हमलोगों ने उस कल कल करती जल धारा में हाथ पैर धोए और पानी पिया भी। पानी बिलकुल साफ़ और काफी ठंडा था। वहां थोड़ा देर हमलोगों ने बिताया और कुछ फोटोग्राफ्स भी लिए। इस झरने का पानी सड़क से होकर सीधा घाटी में गिर रहा था जहाँ निचे से अलकनंदा नदी पुरे वेग से प्रवाहित हो रही थी। ये दृश्य इतना सुन्दर था की मन तृप्त हो जाये।
आप उस झरने का दृश्य निचे दिए गए वीडियो में देख सकते हैं।
थोड़ी देर बाद वहां से हमलोग निकल पड़े बद्रीनाथ के लिए और करीब सवा घंटे में बद्रीनाथ पहुँच गए और समय हो रहा था करीब 3:30 pm । बद्रीनाथ में मैंने देखा की वो जगह थोड़ा सपाट और फैला हुआ था और बाएं साइड में जो पहले अलकनंदा बह रही थी सड़क के समकछ से अब वो सड़क से करीब 250 -300 मीटर दूर स्थान से बह रही थी। वहाँ पहुँच कर हमलोगों ने सबसे पहले एक कैंटीन में दोपहर का भोजन किया। फिर थोड़ा आराम करने के बाद हमलोगोंने ने रुकने के लिए एक होटल ढूंढा। होटल कोई हाई फाई नहीं था, परन्तु साफ़ सुथरा और अच्छा था। इतने समय के बाद अब मुझे उस होटल का नाम स्पस्टतः याद नहीं आ रहा। वैसे आप अगर वहां घूमने जाये तो आपको बहोत सारे होटल और धरमशाल वगैरह आसानी से मिल जायेंगे। होटेल में मैंने धयान दिया की कहीं भी कोई पंखा नहीं था, पूछने पर बताया की यहाँ कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ती की पंखे की जरुरत हो और साल के जयादातर समय बर्फ से ढाका रहता है ये स्थल। सर्दिओं में तो तापमान -30 डिग्री सेल्सियस से भी निचे चला जाता है। उस समय ये तीर्थ स्थल करीब करीब खाली हो जाता है और सारे लोग मैदानों की तरफ चले जाते हैं।
हिमालय दर्शन, बद्रीनाथ धाम जाने के रास्ते पर (view of Himalayas on way to Badrinath Dhaam)
शाम के समय हमलोगोंने चाय और नास्ता किया होटल में और थोड़ा होटल के बहार निकल कर मार्किट देखने गए। अँधेरा होने लगा था पर दूर अलकनंदा नदी के पार हमे सुन्दर सा एक रंग बिरंगा मंदिर दिखा, वो ही विख्यात बद्रीनाथ जी का मंदिर था। उस मंदिर के दाहिने तरफ देखने पर सूंदर हिमालय की श्रृंखला दिखी जिस पर ग्लेशियर दिखे और उस के ऊपर उमड़ते घुमड़ते बादल दिखे। थोड़ा और निचे देखने पर पहाड़ पर एक सुन्दर सा झरना भी दिखा। दृश्य काफी सुन्दर था। तभी मैंने मह्सुश किया की अचानक से जबरदस्त ठण्ड बढ़ गयी है। मेरे मित्र बल्लभजी ने भी कहा की अब होटल में चलना चाहिए फिर खाना खा कर विश्राम किया जाये। रात्रि का भोजन करने के बाद हमलोग अपने कमरे में चले गए और हमने ध्यान से सुना तो पाया की अलकनंदा नदी के बहने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बाहर घुप्प अंधकार था और झींगुरों की आवाज़ के बिच से नदी के वेग से बहने की आवाज़ कुछ अलग सी ही प्रतीत हो रही थी। फिर बारिश भी सुरु हो गयी और बादल गरजने लगे। उस समय हड्डी कंपा देने वाली ठण्ड हो गयी थी और मैं भी सो गया।
हिमालय दर्शन, बद्रीनाथ से (View of Himalayas from Badrinath)
सुबह करीब 8 बजे तक हमलोग रेडी हो गए, फिर देखा की भट्ट हमलोगों के लिए बद्रीनाथजी मंदिर में जाने के लिए एंट्री कूपन लेकर आ गया था। फिर हम मंदिर की तरफ निकल गए। मंदिर हमलोग जहाँ ठहरे थे वहां से करीब आधा किलोमीटर की दुरी पर था। हमे काफी श्रद्धालु गण दिखे। मौसम काफी ठंडा था और थोड़ी बूंदा बांदी भी हो रही थी। चारों तरफ हिमालय के पर्वत थे और सुदूर हमें एक बहुत ही सुन्दर सा मंदिर दिख रहा था। बद्रीनाथ जी का मंदिर अलकनंदा नदी के दूसरे किनारे पर थोड़ा ऊंचाई पर बना हुआ था। दोनों छोर को जोड़ने के लिए एक पूल बना हुआ था। जब हम उस ब्रिज के ऊपर पहुंचे तो अलकनंदा नदी का जबरदस्त नजारा सामने था। नदी काफी तेज धार के साथ बह रही थी और उसका पानी दूध की तरह सफ़ेद मालूम हो रहा था। जल धारा की गर्जना इतनी तेज थी की एक दूसरे से हम ठीक से बात भी नहीं कर पा रहे थे। हमलोग कुछ देर तक उस दृश्य को निहारते रह गए। नदी की जल धारा पहाड़ों के बिच से होकर उछलती फांदती आ रही थी। मैंने देखा की पहाड़ों पर घने बादल भी छाए हुए थे। उस स्थान पर ऐसा मह्सुश हो रहा था की हम इंसांन वाकई बहुत छोटे हैं और पूरी तरह प्रकृति की अनुकम्पा पर जीवित हैं।
बद्रीनाथ जी के मंदिर की ओर (Towards Badrinath temple)
फिर हमलोग उस ब्रिज को पार कर के मंदिर की तरफ चले गए। चूँकि उस समय काफी श्रद्धालु आये हुए थे इस लिए एक लम्बी कतार में हमलोग लग गए और करीब 1 घंटे के बाद हम सभी ने मंदिर में प्रवेश कर के दर्शन किये।पर ये समय आसानी से कट गया क्यूंकि हम सभी हिमालय की मनमोहक घाटी में थे और हमारी बाएं तरफ निचे अलकनंदा नदी दिख रही थी। मंदिर में दर्शन के बाद मन में एक अनोखा सा सुख का आभाष हुआ। इस मंदिर का पौराणिक महत्वा होने के साथ साथ हिन्दू धर्म में बहोत ही उच्च स्थान है। बद्रीनाथ जी मंदिर की सुंदरता भी दिल को छू जाने वाली है। मंदिर काफी कलरफुल और इसका आर्किटेक्चर काफी आकर्षक है।
बद्रीनाथ जी का मंदिर(Badrinath temple)
फिर हमलोग वापस अपने होटल आ गए। थोड़ा विश्राम करने और लंच करने के बाद भट्ट ने हमे बताया की यहाँ से करीब 3-4 किलोमीटर की दुरी पर माणा गांव (Mana village) है जो की भारत और चीन के बॉर्डर से पहले का आखरी बसावट वाला छेत्र है। उसने ये भी बताया की ये एक अतयंत ही सूंदर जगह है और सरस्वती नदी (Saraswati river) का उदगम स्थान भी है। बच्चन ने हमे ये भी बताया की माणा गांव का पुराणों में भी जिक्र है और बताया की मान्यता है की पांडव भी अपने आखरी समय में सरस्वती नदी को पार करके स्वर्ग की अभिलाषा में गए थे और जिन में सिर्फ युधिस्टिर ही अंततः स्वर्ग जा पाए थे और उनके सारे भाईओं के अलावा द्रौपदी उस विकट रास्ते को पार नहीं कर पाए थे और उन्होंने उसी रास्ते में अपने प्राण त्याग दिए थे। ये सब सुन कर मन में तीव्र उत्सुकता जग गयी की जल्दी से जल्दी पहुंचा जाये माणा विलेज। दिन भर की थकान तुरंत छू मंतर हो गयी।
बद्रीनाथ से माणा गांव की यात्रा
हमलोग फटाफट गाड़ी में बैठ गए और उसके बाद माणा की तरफ निकल गए। बद्रीनाथ से सीधा ही रास्ता है माणा गांव का। रास्ते के दाहिने तरफ हिमालय के पर्वत है और बाएँ तरफ करीब 100 मीटर की दुरी से घाटी में अलकनंदा नदी बहती है। थोड़ी आगे जाने पर मैंने देखा की वहां का दृश्य थोड़ा अलग सा था बद्रीनाथ से। वहां अलकनंदा नदी की तरफ काफी समतल स्थान भी दिख रहा था और उसम बिच बिच में हिमालय की ऊँची पहाड़ियां थी और उनके बगल से कहीं दूर से अलकनंदा नदी आती दिख रही थी।
आज करीब सात वर्ष के बाद भी जब मैं उस जर्नी को अपने इस ब्लॉग में उकेरने की कोशिश कर रहा हूँ तो ऐसा प्रतीत हो रहा की मेरे आँखों के सामने वो सारे दृश्य किसी चलचित्र की तरह प्रस्तुत होते जा रहे हैं। मैं आज भी अनुभव कर पा रहा हूँ पहाड़ों की वो ठंडी हवा और वहां का मनमोहक दृश्य।
जब हम और आगे पहुंचे तो हमें एक बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन का बड़ा सा एंट्री बोर्ड दिखा जिसमें लिखा था "सीमांत ग्राम माणा" "(Last Indian village). कुछ जगह सड़क पर पहाड़ से निकलने वाले झरने भी दिखे , जिसका पानी रोड के बाएं तरफ बह रही अलकनंदा में जा कर मिल रहा था। वहां के पहाड़ काफी भुरभुरे थे और लैंड स्लाइड का कई जगह खतरा भी था। फिर बच्चन ने एक सुरक्षित स्थान देख कर गाड़ी को पार्क कर दिया।
माणा गांव समुद्र तल से करीब 3200-3300 मीटर की ऊंचाई पर है, अतः यहाँ ऑक्सीजन की मात्रा तराई छेत्र से काफी कम है और इसका एहसास हमें तुरंत होने लगा। जहाँ हमने कार पार्क किया था वहां से हमें थोड़ा चढ़ाई कर के भीम पूल की तरफ जाना था। ये रास्ता माणा गांव से हो केर जाता है और आपको वहां के निवाशी मिलेंगे जो की आपका आवभगत भी करते हैं। आप चाहे तो उनके हाथ का बुना हुआ शॉल, स्वेटर या कुछ अन्य कपड़े भी खरीद सकते हैं। चढ़ाई पर रास्ता संकरा हो जाता है। फिर हम लोग एक चाय की छोटी सी दुकान पर रुके (tea stall ) जिसके बोर्ड पर लिखा था भारत की आखरी चाय की दुकान। हमने वहां चाय की चुस्की ली और साथ में बिस्कुट और मट्ठी भी खायी।
उसके बाद हम चल पड़े सरस्वती नदी के उदगम स्थल पर। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर हमे जल धारा की भीषण गर्जना सुनाई देने लगी। मन में जबरदस्त उत्सुकता जाग उठी थी उस जल धारा को देखने की। वहां कुछ टूरिस्ट हमे एक छोटे से परन्तु मजबूत पूल पर लोग खड़े दिखाई दिए। सामने जब मै पहुंचा तो पाया की चट्टानों को भेद कर दूधिए रंग का एक जल प्रपात निकल रहा था। पानी का वेग बहुत जयादा था और उस से उत्पन्न होने वाली आवाज़ कर्ण भेदी । हम जिस पल पर खड़े थे वो अपितु एक विशाल शीला खंड थी लोगों ने बताया की इसे भीम पूल कहते हैं। मान्यता है की हज़ारों साल पहले जब पांडव भाई और द्रौपदी स्वर्गारोहिणी की तरफ जा रहे थे तो सरस्वती नदी की ये जलधारा उनके बिच में पड़ी थी। द्रौपदी इस जलधारा को पार नहीं कर पा रही थी तब भीम जिस में सैकड़ों हाथिओं का बल था उसने एक बड़ी सी शीला को उठा कर नदी की जलधारा के ऊपर रख दिया था उसके ऊपर से गुजरने के लिए। इस कारण से उस चट्टान को भीम पूल कहते हैं। उस समय मेरी गोद में मेरी छोटी सी बेटी थी और वो भी इस दृश्य को टुकुर टुकुर निहार रही थी। वहां की वीडियो आप निचे देख सकते हैं।
भीम पूल पर जहाँ हमलोग खड़े थे, वहां सरस्वती नदी की तीव्र जल धारा से उत्पन्न पानी की फुहारें हमें थोड़ी थोड़ी भीगा रही थी। उस पानी में सौंधी-सौंधी सी खुशबु आ रही थी। थोड़ी देर में हम ब्रिज को पार कर के थोड़ा निचे की तरफ उतर गए जहाँ एक तरफ सरस्वती जी का मंदिर था और बगल में एक विशाल शिला खंड था जो की किसी बहोत मोटी पुस्तक की तरह प्रतीत हो रहा था। उस शिला खंड पर वयास पोथी लिखी हुई थी। वहां लिखा हुआ था की ये पवित्र गुफा करीब 5300 वर्ष पुरानि है। ये मान्यता है की महर्षि वेदव वयास जी ने गणेश जी को महाभारत की कथा सुनाई थी और जिसको सुनकर गणेश जी ने महाभारत ग्रन्थ लिखा था। ये भी मान्यता है की बगल से गुजर रही सरस्वती नदी के शोर के कारण महर्षि वेदव्यास जी को कथा सुनाने में दिक्कत हो रही थी तो उन्होंने सरस्वती नदी से शोर कम करने की विनती की थी लेकिन सरस्वती नदी ने उनकी बात नहीं माना था। फिर क्रोधित हो कर महर्षि वेदव्यास ने श्राप दिया था सरस्वती नदी को की वो थोड़ी दूर में ही विलुप्त हो जाएगी। वेदव्यास जी की गुफा के बारे में जान ने के लिए आप निचे दिए गए वीडियो के लिंक को देख सकते हैं।
courtesy Indian Spiritual
वेदव्यास गुफा को देखने के बाद हमलोग थोड़ा आगे एक पगडण्डी से होते हुए स्वर्गारोहिणी की तरफ निकले। ये रास्ता अलकनंदा नदी के उदगम स्थल की तरफ जा रहा था। भट्ट ने हमे बताया की सुदूर ग्लेशियर जो दिख रहा है वहीँ से अलकनंदा नदी निकलती है। वो स्थान कम से कम 7-8 किलोमीटर की दुरी पर होगा जहाँ से हमने उस ग्लेशियर को देखा था। भट्ट ने ये भी बताया की ग्लेशियर के दाहिने साइड में काफी ऊँची पहाड़ी से एक विशाल झरना गिरता है जिसे वसुधारा के नाम से जाना जाता है। बल्लभ जी और मुझे भी वहां जाने की इच्छा हो रही थी, परन्तु शाम के करीब 4 बज चुके थे और हमारे साथ छोटे बच्चे भी थे। तभी ग्लेशियर की तरफ से कुछ लोग वापसी में हमे मिले और उन्होंने हमें बताया की इस समय वहां जाना एक दम अनुचित होगा क्यूंकि रास्ता बहोत ख़राब है और पहाड़ों से बोल्डर्स भी गिर रहे हैं। उन्होंने ये भी बताया की ग्लेशियर की तरफ बारिश और थोड़ी बर्फ बारी भी हो रही है और वहां बिना प्रॉपर ट्रैकिंग गियर के जाना खतरनाक हो सकता है।
अलकनंदा नदी का उदगम स्थान (origin of river Alaknanda)
फिर हमलोगों ने वहां से वापसी का निर्णय लिया। लेकिन वापसी से पहले उस जगह का हमलोगोंने दिल से आनंद लिया। चूँकि उस रास्ते में कुछ ही लोग थे तो एक अजीब सी शांती का अनुभव हो रहा था। हमने नोट किया की वहां के पहाड़ों पर पेड़ नहीं के बराबर थे जो की ये दर्शा रहे थे की हमलोग अब काफी ऊंचाई पर पहुँच चुके थे।पहाड़ों के बिच से गुजरती हुई हवा की सांय-सांय करती आवाज़ और निचे बाएं तरफ घाटी से गुजरती हुई अलकनंदा नदी की जल धारा की ध्वनि के अलावा और कुछ भी तो नहीं था वहाँ। ये कहना गलत नहीं होगा की उस जगह में सुंदरता के साथ साथ एक अजीब सी वीरानगी का भी एह्साह हो रहा था। हमने वहां कुछ फोटोग्राफ्स लिए और फिर वापस होटल के लिए निकल पड़े।
होटल पहुँच कर जब मैंने और बल्लभ जी ने अगले दिन यानि 14 जून 2013 के लिए वैली ऑफ़ फ्लावर्स जाने की बात डिसकस की। परन्तु मेरी वाइफ ने सीधा मना कर दिया और ये कहा की कितना खतरनाक पहाड़ ये मैंने देख लिया है और अगर चलना है वैली ऑफ़ फ्लावर्स तो हम भी साथ चलेंगे और आप लोग को अकेले जाने नहीं देंगे। ये सुन कर मैंने और बल्लभ जी ने फिर ये फाइनल किया की वैली ऑफ़ फ्लावर्स की ट्रिप को कैंसिल किया जाये और अगली सुबह वापस हम बद्रीनाथ से ऋषिकेश की तरफ निकल लेंगे। उस समय हमें नहीं पता था की ये एक छोटी सी जिद मेरी वाइफ की और हमलोग का वैली ऑफ़ फ्लावर्स का प्लान कैंसिल कर देना शायद हमारे लिए जीवन का वरदान ले कर आया था।
बद्रीनाथ से ऋषिकेश की वापसी
अगली सुबह 14 जून 2013 को हमलोगोंने ब्रेकफास्ट कर के बद्रीनाथ धाम से निकल पड़े ऋषिकेश के लिए। रास्ते में बारिश सुरु हो गयी थी और अलकनंदा नदी का जल भी उफान मारने लगा था। रास्ते में कहीं कहीं छोटे मोटे लैंड स्लाइड भी होना सुरु होगया था, जिस कारन वाहनों की लम्बी कतारें भी लगनी लगी थी। उस बारिश में भी बहोत सारे लोग बद्रीनाथ की तरफ जा रहे थे। भट्ट ने फिर रास्ता चेंज कर के टेहरी की तरफ से निकलने का प्लान बनाया। उसने बताया की उस रास्ते के पहाड़ थोड़े पक्के पत्थरों के है और लैंड स्लाइड का खतरा थोड़ा काम रहता है और साथ ही आप लोग उसी के साथ टेहरी डैम भी देख लेना।
मैं आपको बता दूँ की टेहरी डैम भागीरथी और भिलंगना नदी के संगम पर बना है और एशिया का सबसे ऊँचा डैम है जिसकी ऊंचाई करीब 855 फ़ीट है। हमें रास्ते में बहोत सारे चीड़ के पेड़ दिखे जिसमें से चीड़ का तेल लोग कलेक्ट कर रहे थे। वो रास्ता वाकई काफी अच्छा था और उस तरफ ट्रैफिक भी काफी कम था। टेहरी डैम पहुँच कर हमलोगोंने एक ढाबे में खाना खाया और विशाल डैम को निहारा। उस समय डैम के जलाशय में पानी काफी कम था। ढाबे वाले से जब मैंने इसका कारन पूछा तो उसने बताया की बारिश से पहले जलाशय का पानी कम हो जाता है और बारिश से पहले अथॉरिटी पानी रिलीज़ करते रहती है ताकि जब जोरदार बारिश हो तो डैम में छमता हो अतिरिक्त पानी को रोकने की।
14 तारीख की रात्रि में हमलोगोंने नगरासू में एक होटल में स्टे किया। सुबह उठ कर जब मै बालकोनी में गया तो वहां का नजारा काफी सुन्दर था। चारो तरफ मानसून के बादल से घिरे पहाड़ थे। उसका दृश्य आप निचे दिए वीडियो में देख सकते हैं।
फिर वहां से हमलोग रेडी हो कर करीब 9 बजे ऋषिकेश के लिए निकल गए। फिर ऋषिकेश 2-3 घंटे में पहुँच गए। वहां पहुँच कर हिमांशु और चाचा जी से मुलाकात की और भट्ट को विशेष रूप से धन्यवाद् दिया।
हिमांशु हमें ऋषिकेश में 1 दिन रुकने के लिए कह रहा था पर अब हमलोग वापस दिल्ली जाना छह रहे थे क्यूंकि काफी लम्बी छुट्टी वैसे ही हो चुकी थी। फिर करीब 2 बजे दिल्ली के लिए वापस हमलोग मेरी गाड़ी से निकल लिए। बारिश तब तक स्टार्ट हो चुकी थी फिर भी टूरिस्ट्स गाड़िओं में भर भर के हरिद्वार और ऋषिकेश की तरफ आ रहे थे। इस बार मानसून थोड़ा जल्दी उत्तराखंड पहुँच गया था।
हमलोग दिल्ली करीब शाम के 7 बजे तक पहुँच गए और मैंने बल्लभ जी और उनकी फैमिली को साकेत में ड्राप किया। उस समय दिल्ली में भी घनघोर बारिश हो रही थी। उसके बाद मैं अपने घर आ गया।
16-17 जून 2013 की भयंकर आपदा
चूँकि काफी थकान हो गयी थी इसलिए अगली सुबह यानि 16 जून 2013 को नींद जरा देर से खुली और मैंने पाया की पापा और कुछ और मित्रों के ढेरों मिस कॉल आए हुए थे। पापा को मैंने फ़ोन लगाया तो पापा ने बताया की उत्तराखंड में भयंकर विनाशकारी बाढ़ आ गयी है। मैंने फटाफट टीवी ऑन किया और देखा वो विकराल रूप गंगा का जिसने हजारों जीवन को लील लिया था। बद्रीनाथ का रास्ता भी अलकनंदा नदी ने काट दिया था और सबसे त्राहिमाम केदारनाथ धाम में हुआ है। मैंने हिमांशु को भी फ़ोन लगाया तो उसने बताया भइआ बस आप लोग एक दिन पहले पहाड़ से उतर गए तो बच गए। उसने बताया की ऐसा भयंकर बाढ़ उसने उत्तराखंड में कभी नहीं देखा और गंगा नदी अभी पुरे उफान पर है। साथ ही बताया की जान माल का भरी नुकशान हुआ है जिसका आकलन लगा पाना अभी मुश्किल है। न्यूज़ चैनल्स से ये भी पता चला की केदारनाथ में 17 जून को भी प्रलय आया था जब अति वृष्टि और लैंड स्लाइड के कारन ऊँची पहाड़ी पर ग्लेशियर निर्मित एक झील फट गयी थी और अचानक से लाखों टन पानी और चट्टान अचानक से केदार घाटी को दुबारा अपने चपेट में ले लिया था और रास्ते में आने वाली कोई भी चीज नहीं बची थी सिवाय केदारनाथ जी का प्राचीन मंदिर।
courtesy: ||Bharat||
न्यूज़ रिपोर्ट्स से पता चला की हिमालया में कई जगह एक साथ बादल फटे थे 16 और 17 तारीख की काली रात में और ख़ास करके केदारनाथ घाटी में। बादल फटने के कारन पहाड़ पर केदार घाटी में एक बड़ी सी झील का किनारा टूट गया था और अचानक से लाखों टन पानी और चट्टान पूरी केदार घाटी को अपनि लपेट में ले लिया था। उस त्रासदी से निपटने में बाद में भारतीय सेना की मदद ली गयी थी और वो अब तक का सबसे बड़ा और खतरनाक बचाव अभियान था। उस अभियान का नाम ऑपरेशन राहत रखा गया था। उस भयंकर आपदा में हजारों लोगों की जान चली गयी थी और कितने लापता हो गए थे। बड़ा ही दुखद और दिल दहला देने वाली त्रासदी थी वो।
courtesy: The Quint
प्रकृति ने पल भर में ही सब कुछ बदल कर रख दिया था और साथ में यह भी जता दिया था की अत्यधिक दोहन उसका सही नहीं है अन्यथा उसके प्रकोप का सामना मनुष्य को करना पड़ेगा।
उस त्रासदी के बाद गवर्नमेंट ने भी काफी रेगुलेशंस लाया है और विज़िटर्स की संख्या को भी नियंत्रित करने की कोशिश की है। इसके साथ ही अब वहां रोड्स का चौड़ीकरण और आल वेदर रोड्स का निर्माण भी किया जा रहा है। फिर भी हमे ये बात भूलनी नहीं चाहिए की हिमालय का इकोलॉजी बड़ा ही नाज़ुक (fragile) है और अनावश्यक दोहन और छेड़ छाड़ से बचना चाहिए।
निष्कर्ष
ये कहना गलत नहीं होगा की उत्तराखंड की सुंदरता अद्भुत है। वहां हिमालय की ऊँची ऊँची चोटिओं से ले कर कई महत्वपूर्ण नदिओं का उदगम छेत्र भी है। बद्रीनाथ और माणा उत्तराखंड के चमोली डिस्ट्रिक्ट में पड़ते हैं और समुद्र तल से करीब 3200 से 3500 मीटर की ऊंचाई पर है। बद्रीनाथ धाम हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण धर्म स्थल भी है। यहाँ आपको भरपूर प्राकृतिक सुंदरता का अनुभव मिलेगा। परन्तु जैसा मैंने पहले बताया है की ये जगह हिमालय के नाजुक और सवेंदनशील छेत्र (fragile area) में स्तिथ है तो सतर्कता आवश्यक है। भले ही आप ग्रीष्म ऋतू में सफर कर रहे हो पर आपके पास ठण्ड के कपड़े होने चाहिए। खास कर के रात्रि में तापमान काफी निचे चला जाता है। आप जिस गाड़ी में सफर कर रहे हैं उसकी कंडीशन ठीक होनी चाहिए। मौसम का विशेष ध्यान रख कर यात्रा करनी चाहिए और मानसून में जर्नी को ना ही प्लान करे तो उचित होगा। कूड़ा कचरा को उचित स्थान पर डिस्पोज़ करें और लोकल अथॉरिटीज की दिशा निर्देश का पालन करे। वैसे भारत सरकार अब वहां चार धाम यात्रा के लिए सभी मौसम (all weather) रोड्स का निर्माण कर रही है जिस कारण यात्रा और भी सुगम हो जाएगी।
मै उम्मीद करता हूँ की आपको मेरी ये ट्रेवल बायोग्राफी अच्छी लगी होगी।
धन्यवाद।
[Disclaimer: The aforesaid views and experience are personal to the author and viewers and travelers are advised to check from concerned authority prior to travelling to the site. Further the author shall not be liable for any errors or omissions in the information. Any views or opinions are not intended to malign any religion, ethnic group, club, organization, state, company or individual. We always respect the dignity and feelings of any religion, ethnic, individual, groups, company etc. Photos in the post are subject to copyright.]
Very Nice Abhishek..laga ke sab aankho ke samne ho raha ho.. brilliantly told your travel story..loved it...and yes it must have been a narrow escape for you. Sayantan
Very Nice Abhishek..laga ke sab aankho ke samne ho raha ho.. brilliantly told your travel story..loved it...and yes it must have been a narrow escape for you. Sayantan
Really dost, I remember this journey of yours when I was at Africa and seen your all posts in FB too. I remember o connected also. Really Yaar god bless u all. Also bhaibBhai nice way your presnete.supweb.
Really dost, I remember this journey of yours when I was at Africa and seen your all posts in FB too. I remember o connected also. Really Yaar god bless u all. Also bhaibBhai nice way your presnete.supweb.
Thank you for sharing useful information with us. please keep sharing like this. And if you are searching a unique and Top University in India, Colleges discovery platform, which connects students or working professionals with Universities/colleges, at the same time offering information about colleges, courses, entrance exam details, admission notifications, scholarships, and all related topics. Please visit below links:
Rishikesh is a beautiful small town situated in the state of Uttarakhand in India. It is situated in the foothills of Himalayas and on the banks of River Ganges . It is often referred to as Yoga Capital of the World and is one of the most favored tourist destinations worldwide. It is this place where the mighty and auspicious River Ganges descend from the Himalayas to the planes. This place is also renowned for white water rafting and a large number of sacred and beautiful Hindu temples. River rafting in Rishikesh River Ganga or often called as River Ganges originates from the Himalayas in state of Uttarakhand in India (it's a glacier fed river ). There are three main tributaries of river Ganga namely Bhagirathi, Alaknanda and Mandakani . At Rudraprayag , river Mandakini joins river Alaknanda ; and finally in Devprayag , where the Bhagirathi joins the Alaknanda to form the River Ganges, which is regarded as the most holiest river in India.
MY JOURNEY TO PREHISTORIC CAVE PAINTINGS On way to Prehistoric cave paintings Rajasthan is a place of historical forts and beautiful palaces. It has a very rich cultural heritage and not only people of India but even foreigners love to visit the state. In the last week of December 2018 I also planned for a short trip to Rajasthan, however it was not going to be an usual trip to some popular destination, but to a least known place where Prehistoric cave paintings had been discovered. The place was somewhere near Dadhikar Fort in Alwar . So here the journey begins.. Our Journey To Prehistoric Cave Paintings I reached Gurugram at around 10 AM and met two of my friends and then we had some breakfast in Harish Bakery and Sweets and we purchased some snacks, cakes etc for our journey. The idea was not to take any break in between for food etc as we were bit late. Delicious dhokla at Harish Restaurant Then we all packed ourselves in my car and searche
MY TRIP TO KEOLADEO NATIONAL PARK pics from keoladeo national park Keoladeo National Park was formerly known as Bharatpur Bird sanctuary and the same is located in Bharatpur town in state of Rajasthan in India. The sanctuary is spread into more than 28 square km of area and is one of the richest habitat of large number of birds including reptiles like pythons etc. Especially during winter large number of migratory birds travel to the sanctuary from different parts of the world including the poles. In the year 1982 the sanctuary was declared as National Park and in the year 1985 it was listed by UNESCO as World Heritage Site. HOW TO REACH : Keoladeo National Park is located in Bharatpur in Rajasthan and is well connected with roads and the nearest airport being at New Delhi and Jaipur . Distance of the park is about 220 km from Delhi and about 180 km from Jaipur. BEST TIME TO VISIT: We were informed that the best period for
Very Nice Abhishek..laga ke sab aankho ke samne ho raha ho.. brilliantly told your travel story..loved it...and yes it must have been a narrow escape for you.
ReplyDeleteSayantan
Very Nice Abhishek..laga ke sab aankho ke samne ho raha ho.. brilliantly told your travel story..loved it...and yes it must have been a narrow escape for you.
ReplyDeleteSayantan
Really dost, I remember this journey of yours when I was at Africa and seen your all posts in FB too. I remember o connected also. Really Yaar god bless u all. Also bhaibBhai nice way your presnete.supweb.
ReplyDeleteThanx so much. Yes I remember you called me up from South Africa while I was in mid of my journey. .
DeleteReally dost, I remember this journey of yours when I was at Africa and seen your all posts in FB too. I remember o connected also. Really Yaar god bless u all. Also bhaibBhai nice way your presnete.supweb.
ReplyDeleteIt is really a helpful blog to find some different source to add my knowledge. Host Family In Ireland
ReplyDeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteThank you for sharing useful information with us. please keep sharing like this. And if you are searching a unique and Top University in India, Colleges discovery platform, which connects students or working professionals with Universities/colleges, at the same time offering information about colleges, courses, entrance exam details, admission notifications, scholarships, and all related topics. Please visit below links:
ReplyDeleteSushant University in Gurugram
The Assam Royal Global University in Jorha
Alliance University in Bangalore
REVA University in Bangalore
Centurion University of Technology and Management in Bhubaneswar